देश में सम्पूर्ण क्रांति आन्दोलन के जनक जयप्रकाश नारायण की 120 वीं जयंती

राकेश बिहारी शर्मा-भारत में स्वतंत्रता आन्दोलन का इतिहास न केवल अत्यन्त रोचक है, वरन् अद्वितीय है। भारत में स्वतंत्रता आन्दोलन में वर्षों के अंग्रेजी उपनिवेशवादी सम्राज्य की गुलामी के बीच जो उतार-चढ़ाव देखने को मिलते हैं, वह विश्व में सर्वथा नवीन हैं। भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलनों की जो विचारधारा रही है, उसके जो लक्ष्य रहे हैं तथा उसके जो परिणाम हुए हैं, वह इतिहास की दृष्टि से काफी महत्त्वपूर्ण हैं। इन आन्दोलनों के पीछे जो सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि रही है, वह निश्चित रूप से आन्दोलन की दशा एवं दिशा देने में काफी प्रभावी रही है। भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के प्रभाव में उसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि प्रमुख रूप से रही है। विदेशी शासन से मुक्ति पाने के लिए भारतीय जनता का बहादुरीपूर्ण संघर्ष भारतीय राष्ट्रवाद का उदय एवं प्रभाव ही था। देश की आजादी का जिक्र होने पर जिस तरह सबसे पहले और सबसे प्रमुखता से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का जिक्र होता है, उसी तरह देश की दूसरी आजादी का सबसे बड़ा श्रेय लोकनायक जयप्रकाश नारायण को जाता है। दूसरी आजादी यानी देश में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की ओर से थोपे गए आपातकाल का खात्मा और लोकतंत्र की बहाली।

जयप्रकाश नारायण का पारिवारिक जीवन और शिक्षा –विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र को नया जीवन देने वाले जयप्रकाश यानी जेपी का जन्म 11 अक्टूबर 1902 को बिहार और उत्तर प्रदेश के सीमा पर मौजूद छोटे से गांव सिताबदियारा में कायस्थ परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री हरसू दयाल तथा माता का नाम श्रीमती फूलरानी देवी था। उनकी माता एक धर्मपरायण महिला थीं। तीन भाई और तीन बहनों में जयप्रकाश अपने माता-पिता की चौथी सन्तान थे । उनसे बड़े एक भाई और एक बहन की मृत्यु हो जाने के कारण उनके माता-पिता उनसे अपार स्नेह रखते थे। प्राथमिक शिक्षा गांव में हासिल करने के बाद सातवीं क्लास में उनका दाखिला पटना में कराया गया है। बचपन से ही मेधावी जयप्रकाश को मैट्रिक की परीक्षा के बाद पटना कॉलेज के लिए स्कॉलरशिप मिली।
जयप्रकाश ने रॉलेट एक्ट जलियाँवाला बाग नरसंहार के विरोध में ब्रिटिश शैली के स्कूलों को छोड़कर बिहार विद्यापीठ से अपनी उच्चशिक्षा पूरी की। महज 18 साल की उम्र में 1920 में जयप्रकाश जी का विवाह ब्रज किशोर प्रसाद की बेटी प्रभावती से हुआ। कुछ साल बाद ही प्रभावती ने ब्रह्मचर्य का व्रत ले लिया और अहमदाबाद में गांधी आश्रम में राष्टपिता की पत्नी कस्तूरबा के साथ रहने लगीं। जेपी ने भी पत्नी के साथ ब्रह्मचर्य व्रत का पालन किया। जयप्रकाश जी ने एम. ए. समाजशास्त्र से किया। जयप्रकाश ने अमेरिकी विश्वविद्यालय से आठ वर्ष तक अध्ययन किया और वहाँ वह मार्क्सवादी दर्शन से गहरे प्रभावित हुए। पढ़ाई करते हुए उन्होंने अपना खर्च वहन करने के लिए गैराज में काम किया था।

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जयप्रकाश नारायण का राजनैतिक जीवन – जयप्रकाश जी गांधीवादी विचारों से प्रभावित थे और स्वदेशी सामानों का इस्तेमाल करते थे। वह हाथ से सिला कुर्ता और धोती पहनते थे। अमेरिका से लौटने के पश्चात् कुछ समय तक वे बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र के प्रवक्ता रहे, लेकिन भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में भाग लेने के उद्देश्य से उन्होंने नौकरी छोड़ दी और काँग्रेस के सक्रिय कार्यकर्ता बन गए। वर्ष 1934 में काँग्रेस की नीतियों से असन्तुष्ट नवयुवकों ने जब अखिल भारतीय काँग्रेस समाजवादी पार्टी की स्थापना की तो जयप्रकाश नारायण इसके संगठन मंत्री बनाए गए। इस पार्टी में उनके साथ राम मनोहर लोहिया, अशोक मेहता और आचार्य नरेन्द्र देव जैसे राजनेता भी थे। आजादी की लड़ाई में सक्रिय भूमिका निभा रहे जेपी को 1932 में गिरफ्तार कर लिया गया। जेल में उन्हें काफी यातनाएं दी गईं। इसके कारण वर्ष 1932 से 1946 के बीच ब्रिटिश सरकार ने उन्हें कई बार जेल की सलाखों के पीछे भेजा, किन्तु बार-बार वे जेल कर्मचारियों को चकमा देकर फरार होने में सफल रहे।
विचारों में मतभेद होने के बाद भी महात्मा गाँधीजी जयप्रकाश जी से काफी अनुराग रखते थे। 7 मार्च, 1940 को जब उनको पटना में गिरफ्तार कर चाईबासा जेल में बंद कर दिया गया, तब गाँधीजी ने कहा था- “जयप्रकाश नारायण की गिरफ्तारी एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना है। वे कोई साधारण कार्यकर्ता नहीं हैं, बल्कि समाजवाद के महान् विशेषज्ञ हैं।” जेल से बाहर आने के बाद वह भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल हुए। इसी दौरान कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का गठन हुआ और जेपी इसके महासचिव बनाए गए। 1954 में उन्होंने बिहार में बिनोवा भावे के सर्वोदल आंदोलन के लिए काम करने की घोषणा की थी। 1957 में उन्होंने राजनीति छोड़ने का भी फैसला कर लिया था। हालांकि, 1960 के दशक के अंत में एक बार फिर वे राजनीति में सक्रिय हो गए थे। उन्होंने किसानों के आंदोलनों की भी अगुआई की।
इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा चुनाव में अयोग्य ठहराए जाने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 को देश में आपातकाल की घोषणा कर दी थी। विपक्ष के सभी बड़े नेताओं को जेल में ठूस दिया गया और अभिव्यक्ति की आजादी पर भी पहरा लगा दिया गया। जयप्रकाश नारायण ने उस समय देश को एकजुट किया और उनके जनआंदोलन का ही परिणाम था कि करीब 21 महीने बाद 21 मार्च 1977 को आपताकाल खत्म हो गया।

जयप्रकाश नारायण का इंदिरा गांधी का विरोध – जयप्रकाश नारायण प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की प्रशासनिक नीतियों के खिलाफ थीं। 1974 में पटना में छात्रों ने आंदोलन छेड़ा था। आंदोलन को शांतिपूर्ण तरीके से अंजाम देने की शर्त पर उन्होंने इसकी अगुआई की। इसी दौरान देश में सरकार विरोधी माहौल बना तो इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा कर दी थी। जेपी भी जेल गए और करीब सात महीनों तक सलाखों के पीछे रहे। उनकी तबीयत भी उन दिनों खराब थी, लेकिन जो संप्रूण क्रांति का नारा दिया, उसने देश में लोकतंत्र की बहाली दोबारा सुनिश्चित कर दी।

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जयप्रकाश नारायण का सम्पूर्ण क्रांति आन्दोलन – इंदिरा गांधी को पदच्युत करने के लिए उन्होंने सम्पूर्ण क्रांति आन्दोलन चलाया था। लोकनायक ने कहा कि सम्पूर्ण क्रांति में सात क्रांतियाँ शामिल हैं। सामाजिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक, राजनैतिक, आर्थिक, शैक्षणिक एवं आध्यात्मिक क्रांति। सम्पूर्ण क्रांति की तपिश इतनी भयानक थी कि केन्द्र में कांग्रेस को सत्ता से हाथ धोना पड़ा। जेपी के नाम से प्रसिद्ध जयप्रकाश नारायण घर-घर में क्रांति का पर्याय बन चुके थे। बिहार में आज के सभी नेता उसी छात्र युवा वाहिनी का हिस्सा थे। वे अत्यंत समर्पित जननायक और मानवतावादी चिंतक तो थे ही इसके साथ-साथ उनकी छवि अत्यन्त शालीन और मर्यादित सार्वजनिक जीवन जीने वाले व्यक्ति की भी है। उनका समाजवाद का नारा आज भी हर तरफ गूँज रहा है, भले ही उन के नारे पर राजनीति करने वाले उन के सिद्धांतों को भूल रहे हों, क्योंकि, उन्होंने सम्पूर्ण क्रान्ति का नारा एवं आन्दोलन जिन उद्देश्यों एवं बुराइयों को समाप्त करने के लिए किया था, वे सारी बुराइयाँ इन राजनीतिक दलों एवं उन के नेताओं में व्याप्त है।

जयप्रकाश के आंदोलन में बिहार के नेता –जयप्रकाश जी इंदिरा गांधी की प्रशासनिक नीतियों के विरुद्ध थे। गिरते स्वास्थ्य के बावजूद उन्होंने बिहार में सरकारी भ्रष्टाचार के विरुद्ध आन्दोलन किया। उन्हें सन् 1970 में इंदिरा गांधी के विरुद्ध विपक्ष का नेतृत्व करने के लिए जाना जाता है। सन् 1974 में सिंहासन खाली करो जनता आती है के नारे के साथ वे मैदान में उतरे तो सारा देश उनके पीछे चल पड़ा, जैसे किसी संत महात्मा के पीछे चल रहा हो। जयप्रकाश आंदोलन में छात्र नेता में शामिल हुए कई नेता जैसे लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार, राम विलास पासवान, रविशंकर प्रसाद सुशील मोदी, मुलायम सिंह यादव जैसे दर्जनों नेता बाद में वर्षों तक सत्ता में रहे। आपातकाल के बाद देश में चुनाव हुए तो कांग्रेस पार्टी की करारी हार हुई और केंद्र में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार का गठन हुआ। खुद इंदिरा गांधी और उनके बेटे संजय गांधी चुनाव हार गए थे।

कर्मयोगी लोकनायक जयप्रकाश नारायण का निधन – आज की युवा पीढ़ी के कम ही लोग जानते होंगे कि लोकनायक जयप्रकाश नारायण के लंबे सार्वजनिक जीवन का सबसे दुर्भाग्यपूर्ण प्रसंग उनके निधन से दो सौ दिन पहले 23 मार्च, 1979 को घटित हुआ था। दुर्भाग्यपूर्ण होने के बावजूद वह इस अर्थ में दिलचस्प है कि उसने उन्हें इस देश तो क्या दुनिया का इकलौता ऐसा नेता बना दिया, जिसे उसके देश की संसद ने उसके जीते जी ही श्रद्धांजलि दे डाली थी! उस दिन दरअसल हुआ यह कि जब वे अपने गुर्दों की लंबे अरसे से चली आ रही बीमारी से पीड़ित होकर मुंबई के जसलोक अस्पताल में मृत्यु से संघर्ष कर रहे थे, सरकार नियंत्रित आकाशवाणी ने दोपहर बाद एक बजकर दस मिनट पर अचानक खबर देनी शुरू कर दी कि जयप्रकाश नारायण का निधन हो गया है। उस वक्त उनके ही निरंतर प्रयत्नों से संभव हुई कांग्रेस की बेदखली के बाद सत्ता में आयी जनता पार्टी का शासन था और हद तब हो गयी थी, जब आकाशवाणी की खबर की पुष्टि कराये बगैर तत्कालीन लोकसभाध्यक्ष केएस हेगड़े ने प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के हवाले से लोकसभा को भी उनके निधन की सूचना दे डाली और श्रद्धांजलियों व सामूहिक मौन के बाद सदन को स्थगित कर दिया। खबर सुनकर लोग अपने प्रिय नेता के अंतिम दर्शन के लिए जसलोक अस्पताल पहुंचने लगे तो जनता पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर अस्पताल में ही थे। उन्होंने बाहर आकर लोगों से क्षमायाचना की और बताया कि लोकनायक अभी हमारे बीच हैं। हम जानते हैं कि 23 मार्च को समाजवादी नेता डॉ. राममनोहर लोहिया की जयंती होती है और इस जयंती के ही दिन जेपी को जीते जी श्रद्धांजलि की शर्मनाक विडंबना तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरार जी देसाई व उनकी सरकार के गले आ पड़ी तो गलती सुधारने के लिए लोकसभा के स्थगन के चार घंटे बाद ही फिर से उसकी बैठक बुलानी पड़ी और विपक्षी कांग्रेस के सांसदों ने इसको लेकर उनकी सरकार की खूब ले दे की। बहरहाल, जीते जी मिली संसद की इस ‘श्रद्धांजलि’ के बाद जेपी दो सौ दिनों तक हमारे बीच रहे और 8 अक्टूबर, 1979 को इस संसार को अलविदा कहा, जिसके लंबे अरसे बाद 1998 में उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारतरत्न’ से सम्मानित किया गया।

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लोकनायक जयप्रकाश नारायण देश के सच्चे समाज सेवक- वे देश के सच्चे समाज सेवक थे, जिन्हें लोकनायक के नाम से भी जाना जाता है। पटना के हवाईअड्डे का नाम उनके नाम पर रखा गया है तथा दिल्ली सरकार का सबसे बड़ा अस्पताल लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल भी उनके नाम पर है। उनका समस्त जीवन यात्रा संघर्ष तथा साधना से भरपूर रहा है। उन्होंने भारतीय राजनीति को ही नहीं बल्कि आम जनजीवन को एक नई दिशा दी। वे समूचे भारत में ग्राम स्वराज्य का सपना देखते थे और उसे आकार देने के लिए अथक प्रयास भी किये। कर्मयोगी लोकनायक बाबू जयप्रकाश नारायण ने स्वार्थलोलुपता में कोई कार्य नहीं किया। वे अन्त: प्रेरणा के पुरुष थे। उन्होंने अनेक यूरोपीय यात्राएँ करके सर्वोदय के सिद्धान्त को सम्पूर्ण विश्व में प्रसारित किया।

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