पुलिस रिपोर्ट मामलों में मजिस्ट्रेट संज्ञान लेते समय धारा जोड़ या घटा नहीं सकतेः इलाहाबाद हाईकोर्ट

पुलिस रिपोर्ट मामलों में मजिस्ट्रेट संज्ञान लेते समय धारा जोड़ या घटा नहीं सकतेः इलाहाबाद हाईकोर्ट

संकलन-कुमुद रंजन सिंह ,विधि छात्र व पत्रकार ।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शुक्रवार को फैसला सुनाया कि मजिस्ट्रेट एक मामले में जो पुलिस रिपोर्ट पर आधारित है, संज्ञान लेने के समय धारा को जोड़ या घटा नहीं सकता है क्योंकि ट्रायल कोर्ट द्वारा केवल आरोप तय करने के समय ही इसकी अनुमति होगी।

न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी की पीठ अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश द्वारा पारित फैसले और आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार कर रही थी।

इस मामले में पत्नी ने प्राथमिकी दर्ज करायी है और उनके पति रोहित कश्यप (आवेदक संख्या 2), उनके जेठ ऋषि, उनके ससुर अमर नाथ, उनकी भाभी और अरविंद कुमार (रिश्तेदार) के खिलाफ कथित तौर पर धारा 498-A, 504, 506, 120-बी, 342, 377, 376 आई.पी.सी. और 3/4 डी.पी.ए के तहत अपराध करने के लिए।

शिकायतकर्ता ने संज्ञान के स्तर पर न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष एक आवेदन दायर कर अनुचित जांच का आरोप लगाया।

पीड़ित शिकायतकर्ता ने एक आपराधिक पुनरीक्षण दायर किया कि आरोप पत्र कम अपराध पर दायर किया गया था, जबकि पर्याप्त सबूत रिकॉर्ड में होने के बावजूद गंभीर प्रकृति के अपराध के लिए कोई आरोप पत्र दायर नहीं किया गया था। मजिस्ट्रेट ने आंशिक रूप से पुनरीक्षण याचिका को स्वीकार कर लिया।

आवेदक के वकील अवधेश कुमार सिंह ने प्रस्तुत किया कि मजिस्ट्रेट उस अपराध के अलावा किसी अन्य अपराध को जोड़ या घटा नहीं सकता जिसके लिए आरोप पत्र दायर किया गया है।

प्रतिवादी के वकील संजय विक्रम सिंह ने प्रस्तुत किया कि मजिस्ट्रेट पोस्ट मास्टर के रूप में कार्य नहीं कर सकता है और वह उपलब्ध सामग्री के आधार पर न केवल उन अभियुक्त व्यक्तियों को बुलाने के लिए अपना दिमाग लगा सकता है जिनके खिलाफ आरोप पत्र दायर नहीं किया गया था, बल्कि उनका संज्ञान भी लिया जा सकता है। घटना में अपराध के अलावा उक्त अपराध के कमीशन के लिए सामग्री थी, इसलिए, पुनरीक्षण न्यायालय ने भी कोई त्रुटि नहीं की है।

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पीठ के समक्ष विचार का मुद्दा था:

क्या अपर सत्र न्यायाधीश द्वारा पारित आदेश कानून के अनुसार है या नहीं?

बेंच ने कहा कि केस डायरी में उपलब्ध सामग्री के आधार पर चार्जशीट में नाम न होने वाले अन्य आरोपियों को समन करने में मजिस्ट्रेट ने कोई गलती नहीं की है। इसमें कोई विवाद नहीं है कि उक्त अभियुक्त व्यक्तियों के सम्मन के लिए सामग्री उपलब्ध थी।

उच्च न्यायालय ने कहा कि “धारा 406 I.P.C के तहत अपराध के लिए संज्ञान। मजिस्ट्रेट द्वारा सभी आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ कानूनी रूप से गलत है, इसलिए, धारा 406 I.P.C के तहत अपराध के लिए संज्ञान लेने के लिए संज्ञान आदेश अपास्त किया जाता है।

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